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22 फरवरी - रैम्प पर कैटवॉक करती
मॉडल्स तो आज तक आप सभी ने देखी होंगी लेकिन शायद ही किसी
ने भैंसों को कैटवॉक देखा हो। अजीब सा लगता है। परंतु
हरियाणा पशुपालन विभाग के महानिदेशक डॉ0 के0 एस0 डांगी तथा
जे0के0 ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ0 विजयपत सिंघानिया के प्रयासों
ने यह सब सार्थक कर दिखाया, जब जींद के अर्जुन स्टेडियम
में देश के कृषि मंत्री शरद पवार एवं हरियाणा के
मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह की उपस्थिति में ‘मुर्राह ऑन
रैम्प’ नामक विश्व में अपनी तरह के पहले कार्यक्रम का सफल
आयोजन कर दिखाया।
हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा भी रैम्प पर
मुर्राह की चहलकदमी देख काफी प्रभावित हुए। उन्होंने तो
अपने संबोधन में मुर्राह को किसानों का ‘काला सोना’ तक
कहकर संबोधित किया। प्रदेश के पशुपालक किसानों के लिए
मुर्राह भैंस खुशहाली लेकर आई है क्योंकि कृषि के साथ-साथ
यह उनकी आय का एक जरिया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आज
किसान की जोत कम होती जा रही है और पशुपालन उनके लिए एक
बेहतर विकल्प है। वैसे भी हरियाणा के किसान पशुपालन को
सर्वाेच्च प्राथमिकता देते है।
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री तथा ग्लैमर नगरी मुंबई से
ताल्लुक रखने वाले केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने भी
इस कार्यक्रम का काफी लुत्फ उठाया। उन्होंने संबोधन में
ब्राजील दौरे का जिक्र करते हुए कहा कि अब तक उन्होंने
ब्राजील के टेलीविजन पर गायों को रैम्प पर चलते हुए देखा
था, लेकिन आज भैंसों की कैटवॉट पहली बार देख रहे है, जिससे
वे काफी प्रभावित हैं। विश्व में भैंसों की सबसे उ दा नस्ल
मुर्राह को उन्होंने हरियाणा की ‘दौलत’ तक बताया और यह
रैम्प वॉक मुर्राह का स मान है। शरद पवार ने तो अपने
संबोधन के अंत में ‘जय हिन्द और जय मुर्राह’ का उद्घोष तक
कर डाला, जिस पर किसानों ने तालियों की गडग़ड़ाहट के साथ
उनका अभिनंदन किया।
देश में आज मुर्राह भैंस की कीमत छह लाख रुपये तक आंकी जा
रही है और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी मांग यूरोप की
जर्सी गायों की तरह बढ़ गई है। यह भैंस एक दिन में 20 से
29 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है तथा इसका दूध अति
पौष्टिक है। केन्द्र सरकार देश में शिशुओं में कुपोषण से
होने वाली मृत्यु दर को कम करने के लिए भी इस नस्ल को
प्रोत्साहित करने पर बल दे रही है ताकि देश में दुग्ध
उत्पादकता को बढ़ाया जा सकें और देश के बच्चों तक मुर्राह
का पौष्टिक दूध उपलब्ध हो सके। आज ‘मुर्राह ऑन रैम्प’
कार्यक्रम के द्वारा किसानों को कुछ ऐसा ही संदेश देने का
प्रयास भी किया गया। रैम्प पर चहलकदमी करती भैंसों एवं कटड़ों
की चमक देखते ही बनती थी और उनका शरीर काले ग्रेनाइट की
तरह चमक रहा था।
रैम्प पर सबसे पहले आये पानीपत जिले के डीडवाड़ी गांव के
नरेन्द्र का गोलू झोटा आया। गोलू का हट्टा-कट्टा चमकीला
बदन देखते ही बनता था, जिसे मुर्राह का सरताज भी कहा जा
सकता है क्योंकि अब तक आठ वर्ष की आयु में यह 1607 भैंसों
का गर्भाधान करवाकर अपनी संतती पैदा करवा चुका है। गोलू के
मालिक नरेन्द्र सिंह ने बताया कि इस झोटे की कीमत 6 लाख
रुपये तक लग चुकी है लेकिन वे इसे बेचने का तैयार नहीं है
और वे इसे शै पू से नहलाते है। रैम्प पर कुल 25 भैंसों,
झोटों, कटड़ों एवं कटडिय़ों के साथ-साथ हरियानी नस्ल के बैलों
की जोड़ी ने भी कैटवॉक कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। गोलू
झोटे के कटड़े की भी कार्यक्रम में काफी चर्चा रही। इस कटड़े
को भिवानी जिले की पंचायत पैंतावास खुर्द ने दो लाख रुपये
में खरीदा है। ग्राम पंचायत के सदस्य बरखा राम ने इस कटड़े
को रैम्प पर कैटवॉक करवाई, जो अपने पिता गालू से किसी मामले
में कम नजर नहीं आया।
कार्यक्रम में सर्वाधिक दूध देनी वाली मुर्राह भैंसों के
मालिकों को 5 हजार से लेकर 25 हजार रुपये तक की प्रोत्साहन
राशि देकर सम्मानित किया गया। |
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